सोमवार, 6 फ़रवरी 2012
गुरुवार, 26 जनवरी 2012
बुधवार, 25 जनवरी 2012
कमाने की तड़प में खाना भूल गए?
खाने की तड़प से ही तुमने कमाना सीखा ...
..... और कमाने की तड़प में खाना भूल गए – प्रकाश ‘पंकज’
..... और कमाने की तड़प में खाना भूल गए – प्रकाश ‘पंकज’
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मंगलवार, 19 जुलाई 2011
सोमवार, 18 जुलाई 2011
भारत बनाम भ्रष्टाचार: छोड़ो गाना शब्द प्रलापी
छोड़ो गाना शब्द प्रलापी,
व्यर्थ न ऐसे शीश नवाओ।
हिम्मत बाँधो, वीर प्रतापी,
पत्थर काटो, राह बनाओ।
– प्रकाश ‘पंकज’
व्यर्थ न ऐसे शीश नवाओ।
हिम्मत बाँधो, वीर प्रतापी,
पत्थर काटो, राह बनाओ।
– प्रकाश ‘पंकज’
बुधवार, 29 जून 2011
शनिवार, 25 जून 2011
गुरुवार, 23 जून 2011
बुधवार, 22 जून 2011
कैसी है रे होड़ सजन सब पाक चरित सुलगावै?
कैसी है रे होड़ सजन सब पाक चरित सुलगावै?
का करी घर मा बैठ कहो निज धरती आग लगावै? – प्रकाश 'पंकज'
ऐ खाकनशीनों उठ बैठो, वह वक्त करीब आ पहुंचा है,
जब तख्त गिराए जाएंगे, जब ताज उछाले जाएंगे।
अब टूट गिरेंगी जंजीरें, अब जिंदानों की खैर नहीं,
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं, तिनकों से न टाले जाएंगे।
दरबार-ए-वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएंगे,
कुछ अपनी सजा को पहुंचेंगे, कुछ अपनी सजा ले जाएंगे।
कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाजू भी बहुत हैं,सर भी बहुत,
चलते भी चलो कि अब डेरे, मंजिल पे ही डाले जाएंगे। - फैज अहमद फैज
रविवार, 13 फ़रवरी 2011
मंगलवार, 25 जनवरी 2011
गुरुवार, 2 दिसंबर 2010
सम्मान पाने के लिए सम्मान देना सीखें
यदि आप खुद को मुझसे छोटा समझते हैं,
मैं आपसे बहुत छोटा हूँ।
यदि आप मुझसे बड़े होने का दम्भ भरते हैं,
यदि आप मुझसे बड़े होने का दम्भ भरते हैं,
तो मैं आपसे भी बड़ा हूँ। – प्रकाश ‘पंकज’
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बुधवार, 1 दिसंबर 2010
अंगद सा हमने पद रोपा
ले नाम सियावर रामचन्द्र,
अंगद सा हमने पद रोपा।
है पूत कहीं ऐसा जग में
जो पाँव हमारे डिगा सके?
–प्रकाश ‘पंकज’
सन्दर्भ: अंगद की आस्था और विश्वास
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शनिवार, 20 नवंबर 2010
रविवार, 14 नवंबर 2010
"बाल मजदूरी कानून".. किसका अभिशाप? किसका वरदान?
"बाल-मजदूरी कानून".. किसका अभिशाप? किसका वरदान?
गजब के घटिया कानून है देश के:
एक समृद्ध परिवार का बच्चा जिसकी परवरिश बड़े अच्छे ढंग से हो रही है, अपने स्कूल और पढाई छोड़ कर टी.वी. सीरियल या फिल्म में काम करता है सिर्फ और सिर्फ अपनी और अपने परिवार की तथाकथित ख्याति के लिए तो यह "बाल-मजदूरी" नहीं होती। वेश्यावृति करने वाली मीडिया भी इसे प्रोत्साहित करती है।
वहीँ अगर कोई बच्चा अपने और अपने परिवार वालों का पेट पालने के लिए प्लेट धो लेता है तो यह "बाल-मजदूरी" हो जाती है और वहीँ यह दोगली मीडिया उस बात को उछाल-उछाल कर कान पका देती है।
.. हमारे यहाँ ऐसे लोगों की भी कमी बिल्कुल नहीं है जो कहेंगे कि वे टी.वी. शो वाले प्रतिभा को प्रोत्साहित कर रहे हैं। ऐसे लोगों को मेरा एक ही जबाब है अगर आपके बच्चों का टी.वी. शो में नाचना गाना प्रतिभा हो सकती है तो हरेक शाम अपनी और अपने घरवालों की रोटी जुगारने की कोशिश में उन बच्चों की प्रतिभा कहीं से भी कम नहीं है, बल्कि ज्यादा ही है। और, अगर आप उनके सामाजिक विकास और शैक्षणिक विकास की बात करें तो दोनों जगहों पर एक हीं बात सामने आती है कि वे सभी अनिवार्य शिक्षा से दूर हो रहे हैं। जुलाहे का बच्चा तो सुविधा नहीं मिलने के कारण शिक्षा में पिछड़ रहा है पर आपका बच्चा तो सुविधाओं के बावजूद उस धारा में बह रहा है जो शैक्षणिक विकास से बिलकुल अलग है। अगर ऐसा ही रहा तो आने वाली पीढ़ी एक "कबाड़ पीढ़ी" पैदा होगी।
यहाँ मै कानून को लाचार ही नहीं उन लोगों का नौकर भी समझूंगा जिनके पास पैसा है, शक्ति है, वर्चस्व है। यही लोग कानून को कुछ इस तरह से बनाते है कि जिनके पास ऐसी समृद्धि है वो इससे निकल सकते हैं और जिनके पास नहीं है वो पिसे जाते हैं इन कानूनी दैत्य-दन्तों द्वारा।
अगर कोई होटल-ढाबे वाला किसी को जीविका देने के लिए "बाल-मजदूरी" करवाने का दोषी हो सकता है तो आज हम सारे लोग जो बड़े मजे से टी.वी. के सामने ठहाके मारते हैं, वाह-वाह करते है, मेरी नज़र में वो सब दोषी हैं "बाल-मजदूरी" करवाने के।
अगर कोई होटल-ढाबे वाला किसी को जीविका देने के लिए "बाल-मजदूरी" करवाने का दोषी हो सकता है तो आज हम सारे लोग जो बड़े मजे से टी.वी. के सामने ठहाके मारते हैं, वाह-वाह करते है, मेरी नज़र में वो सब दोषी हैं "बाल-मजदूरी" करवाने के।
... कानून माने या न माने।
... आप माने या न मानें।
... और मुझे यह भी मालूम है कि अकेले सिर्फ मेरे मानने से भी कुछ नहीं होने को है।
... और मुझे यह भी मालूम है कि अकेले सिर्फ मेरे मानने से भी कुछ नहीं होने को है।
और अंत में इतना हीं कहूँगा कि यदि आपमें अब भी समाज के प्रति थोड़ी नैतिक जिम्मेदारी बची हो तो इसपर विचारें और ऐसे टी.वी. सीरियलों, फिल्मों का "प्रतिकार" करें, सामाजिक बहिष्कार करें, उनका सहभागी न बनें, किन्नरों जैसे तालियाँ न पीटें।
चलता हूँ और आपके लिए कुछ लिंक छोड़ जाता हूँ। धन्यवाद!
चलता हूँ और आपके लिए कुछ लिंक छोड़ जाता हूँ। धन्यवाद!
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गुरुवार, 11 नवंबर 2010
हम उगते सूर्य से पहले डूबते सूर्य को पूजते हैं।
उगते सूर्य से पहले
डूबते सूर्य को पूजते हैं,
अर्घ्य देते हैं,
धन्यबाद करते हैं !
है किसी और में ऐसा साहस, इतनी विनम्रता ?
– अगर हो तो अति सुंदर।
और बाद में उनकी पूजा करते हैं जो हमारे आगे की दिनचर्या में सहायक होंगे ..
.. उगते सूरज को तो सभी पूजेंगे इसमें कोई बड़ी बात नहीं क्योंकि उनके बिना दिनचर्या नहीं चलने वाली, यह एक मजबूरी है ..
पर महान वही है जो उस सीढ़ी को कभी न भूले जिसपर चढ वो अपनी मंजिल की ओर बढ़ता है और उनके प्रति श्रद्धा रखता है ..
... यह बात यहीं तक नहीं रह जाती बल्कि अपने माता-पिता के प्रति भी यही भाव होना चाहिए।
उन डूबते हुए सूर्य को उनके बच्चे कभी न भूलें।
हे समदर्शी सूर्यदेव! हमें कुछ देना न देना पर इतनी बौद्धिक क्षमता जरूर देना कि हर डूबते सूर्य के योगदान को समझें, उनका आदर करें, उनके प्रति श्रद्धा रखें और किसी भी ढलते सूर्य को अकेला न छोडें ।
आपको और आपके परिवार को छठ महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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बुधवार, 10 नवंबर 2010
'पंकज-पत्र' पर पंकज की कुछ कविताएँ: प्रतिकार
'पंकज-पत्र' पर पंकज की कुछ कविताएँ: प्रतिकार
पिछले कुछ दिनों से मेरे मन की स्थिति दयनीय थी। चाह रहा था कुछ लिखना पर लिख नहीं पा रहा था। करुण स्थिति में लिखी गई यह कविता समाज के कुछ ऐसे कुख्यात प्रकार के लोगों को समर्पित है जो की "निम्न" हैं :
अनुच्छेद।।१।। कलमाड़ी, अशोक चव्हाण, ए. राजा और उन जैसे भ्रष्ट लोगों के लिए।
अनुच्छेद।।२।। आई.आई.पी.एम के चोटी वाले अरिंदम जी जैसे अन्य शिक्षा के व्यापारियों के लिए।
अनुच्छेद।।३।। गिलानी, अरुंधती जैसे अन्य देशद्रोहियों और राष्ट्र-विरोधियों के लिए जो देश की अखंडता पर चोट करते हैं।
कविता का पता (जरूर पढ़ें): 'पंकज-पत्र' पर पंकज की कुछ कविताएँ: प्रतिकार
अनुच्छेद।।३।। गिलानी, अरुंधती जैसे अन्य देशद्रोहियों और राष्ट्र-विरोधियों के लिए जो देश की अखंडता पर चोट करते हैं।
कविता का पता (जरूर पढ़ें): 'पंकज-पत्र' पर पंकज की कुछ कविताएँ: प्रतिकार
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मंगलवार, 9 नवंबर 2010
मुझे हर चीज़ में डंडा करने की बुरी आदत है
लोग कहते हैं,
मुझे हर चीज़ में डंडा करने की बुरी आदत है।
मैं सोंचता हूँ,
डंडे से तो कुछ बदला नहीं,
अबकी बाँस उठाकर कोशिश करूँ।
मुझे हर चीज़ में डंडा करने की बुरी आदत है।
मैं सोंचता हूँ,
डंडे से तो कुछ बदला नहीं,
अबकी बाँस उठाकर कोशिश करूँ।
*चित्र: गूगल साभार
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शुक्रवार, 5 नवंबर 2010
संकल्पों के दीप जलाता कदम बढ़ाता चल
संकल्पों के दीप जलाता कदम बढ़ाता चल,
वक्ष दबे बारूदों से खुद राह बनाता चल।
– प्रकाश 'पंकज'
ये बारूद जो सुलग रहे हैं हम जैसों के भीतर, न जाने कब फूटेंगे,
फूटेंगे भी या फिर बस फुसफुसा कर ही रह जाएँगे - ये भी किसे पता?
... कोई बात नहीं,
आज तो कम से कम कुछ कानफोड़ू धमाके कर के बहरों को सुना देने का भ्रम और मजबूत कर लें!
शुभ पटाखोत्सव! ;)
शुभ दीपोत्सव!
आपको और आपके परिवार को प्रकाश-पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ !
ऐसा दिया जलाएँ मन में, जग उजियारा होए!
वक्ष दबे बारूदों से खुद राह बनाता चल।
– प्रकाश 'पंकज'
फूटेंगे भी या फिर बस फुसफुसा कर ही रह जाएँगे - ये भी किसे पता?
... कोई बात नहीं,
आज तो कम से कम कुछ कानफोड़ू धमाके कर के बहरों को सुना देने का भ्रम और मजबूत कर लें!
शुभ पटाखोत्सव! ;)
शुभ दीपोत्सव!
आपको और आपके परिवार को प्रकाश-पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ !
ऐसा दिया जलाएँ मन में, जग उजियारा होए!
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गुरुवार, 4 नवंबर 2010
जीना एक आडम्बर साला मरना भी पाखंड !
जीना एक आडम्बर साला
मरना भी पाखंड !
– प्रकाश ‘पंकज’
मरना भी पाखंड !
– प्रकाश ‘पंकज’
अनुपयुक्त शब्द प्रयोग के लिए क्षमा पर रोक नहीं पाया।
चित्र: गूगल देव साभार
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