ओ दुनिया, मेरी अर्थी पर सर न झुकाना, रोना मत,
सर उठा कर फक्र से यूँ कहना,
मार डाला उस कमबख्त को जो कहता फिरता था -
"ये दुनिया एक खन्जर है !"
- पंकज
सोमवार, 21 जून 2010
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पता नहीं अकस्मात् ये भावनाएँ क्यों झिंझोड़ जाती हैं । निमंत्रण बिना आती हैं और उद्वेलित कर चली जाती हैं ।
...बहुत खूब!!!
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar rachna he i ilke it.... Pradeep arya
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