एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी का नौकर पर अपना मालिक.
वर्त्तमान में सॉफ्टवेर इंजिनियर के रूप में कार्यरत ।
२००८ के जनवरी से मैंने कविता लिखनी शुरू की। "इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर कि धरती पराई लगने लगे" मेरी पहली कविता है । मैं अपनी भावनाओं और विचारों को अक्सर कविता में ढालने की कोशिश करता हूँ पर बहुत कम बार ही सफल हो पता हूँ। मोतियाँ बहुत हैं पर मालाओं में पिरोना सीख रहा हूँ। कृपया आशीर्वाद दें !
शस्त्र भारी थे , उठता न था , लेखनी को ही अब शस्त्र बना लिया ।
शब्द धीमे थे , कोई सुनता न था , लेखन को ही अब स्वर बना लिया । - प्रकाश 'पंकज'
http://prakashpankaj.wordpress.com
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बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंasardaar hain ye panktiyan..
जवाब देंहटाएंati uttam
जवाब देंहटाएंधन्यबाद! दिगम्बर जी, मनीष जी और अमित जी का और उन लोगों का भी जो यहाँ हमारे चिट्ठे पर आकर मेरी रचनाओं को उनका सौभाग्य देत आये हैं ..
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