बहने दी हमने न्याय की धारा,
आज चमकता दीख रहा है,
लोकतंत्र का एक सितारा । – प्रकाश 'पंकज'
गुरुवार, 30 सितंबर 2010
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पता नहीं अकस्मात् ये भावनाएँ क्यों झिंझोड़ जाती हैं । निमंत्रण बिना आती हैं और उद्वेलित कर चली जाती हैं ।
भई वाह ....बहुत ही बढ़िया ...मैं भी आपसे सहमत हूँ .
जवाब देंहटाएंआपको आभार और बधाई.....
jise ham sab ne hai swikara....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.
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