दुनिया वाले सुन लें ...
भरत-पुत्रों की सहनशीलता का तटबंध जब टूटता है,
वे भीम समान मानवता भूल रक्तपिपासु हो जाते है,
शत्रु-वक्ष की रुधिर-चासनी पी कर ही अघाते हैं ।
... कोशिश हो ऐसा रक्तिम इतिहास दोहराया न जाये ।
– प्रकाश ‘पंकज’
– प्रकाश ‘पंकज’
kya bhai bhut naraj dikhte ho duniya se
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति..चिट्ठाजगत की बत्ती जली मिली ... चिट्ठाजगत टीम को बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सही!!
जवाब देंहटाएंGood luck Prakash, keep up the good work
जवाब देंहटाएंअच्छा हो कि दुनिया क़े लोग भारत क़े धैर्य की परीक्षा न ले.
जवाब देंहटाएंरस चूसता हो जो मही का भीमकाय वृक्ष, उसकी शिराएँ तोड़ डालो डालियाँ क़तर दो. बस यही अब शेष है.
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