मानव धर्म पराकाष्ठा
...........भगत गुरु सुखदेव !
राष्ट्र धर्म पराकाष्ठा
...........भगत गुरु सुखदेव !
पुत्र धर्म पराकाष्ठा
...........भगत गुरु सुखदेव !
बन्धु धर्म पराकाष्ठा
...........भगत गुरु सुखदेव !
भगत गुरु सुखदेव भजो तुम ...........भगत गुरु सुखदेव !
परिभाषा है जागृति की ...........भगत गुरु सुखदेव !
परिभाषा हैक्रांति की ...........भगत गुरु सुखदेव !
परिभाषा संग्राम की ...........भगत गुरु सुखदेव !
परिभाषा बलिदान की ...........भगत गुरु सुखदेव !
भगत गुरु सुखदेव भजो तुम ...........भगत गुरु सुखदेव !
प्रतारितों का त्राण है ...........भगत गुरु सुखदेव ! ज्वलित क्रांति का प्राण है ...........भगत गुरु सुखदेव ! स्वतंत्रता की आन है ...........भगत गुरु सुखदेव ! अमर-अमिट बलिदान है ...........भगत गुरु सुखदेव !
भगत गुरु सुखदेव भजो तुम ...........भगत गुरु सुखदेव !
एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी का नौकर पर अपना मालिक.
वर्त्तमान में सॉफ्टवेर इंजिनियर के रूप में कार्यरत ।
२००८ के जनवरी से मैंने कविता लिखनी शुरू की। "इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर कि धरती पराई लगने लगे" मेरी पहली कविता है । मैं अपनी भावनाओं और विचारों को अक्सर कविता में ढालने की कोशिश करता हूँ पर बहुत कम बार ही सफल हो पता हूँ। मोतियाँ बहुत हैं पर मालाओं में पिरोना सीख रहा हूँ। कृपया आशीर्वाद दें !
शस्त्र भारी थे , उठता न था , लेखनी को ही अब शस्त्र बना लिया ।
शब्द धीमे थे , कोई सुनता न था , लेखन को ही अब स्वर बना लिया । - प्रकाश 'पंकज'
http://prakashpankaj.wordpress.com
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