शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

संघर्ष बस अपना रहा, यह कर्म ही अपना रहा ।


न जीत ही अपनी रही, न हार  ही अपनी रही,
संग्राम बस अपना रहा, कर्मभूमि बस अपनी रही ।  
- प्रकाश 'पंकज'

रविवार, 22 अगस्त 2010

क्यों खग समान उन्मुक्तता अब शूल हुई है ?

समय के पिछले पन्नों पर कुछ भूल हुई है,
क्यों खग समान उन्मुक्तता अब शूल हुई है ?   
- प्रकाश 'पंकज'

बुधवार, 18 अगस्त 2010

ऐसे समाज के लिए तो हिटलर चाहिए गाँधी नहीं ।


ये दुनिया बड़ी ढकोसले वाली है
कुछ समझाओ तो कहेगी "पहले खुद करो फिर बोलो",
और जब कर दिखा बोलोगे तो कहेगी 
"तुम महान हो, सब तुम जैसे नहीं हो सकते"। 

ऐसे समाज के लिए तो हिटलर चाहिए गाँधी नहीं

- प्रकाश 'पंकज'

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

कैसी है यह जागृति जब आँखें मूँद सब चल रहे ?

विकास के उन्माद में सब सो चुके हैं गहरी नींद।
कैसा है यह विकास जो विनाश को आमंत्रित कर रहा है ?
कैसी है यह जागृति जब आँखें मूँद सब चल रहे ?
कैसी है यह शिक्षा जो विनाश को प्रेरित करती है ?
प्रकृति के साथ मानव का कैसा यह संघर्ष है ?    - प्रकाश 'पंकज'

सोमवार, 9 अगस्त 2010

कमबख्त ये जमाना मेरी मार कैसे झेलेगा ?

इस ज़माने की मार तो हम सह ही लेंगे,
कमबख्त ये जमाना हमारी मार कैसे झेलेगा ?  

रविवार, 8 अगस्त 2010

धारा का निर्देशक


धारा में बहने वाले न बनो !
जागृत हो या भ्रमित हो धारा,
धारा में बहते जाओगे ।


धारा को मोड़ने वाले बनो !
जागृत हो या भ्रमित हो धारा, 
सही दिशा ले जाओगे । 

-प्रकाश 'पंकज'