मंगलवार, 19 जुलाई 2011

फुलझड़ियों को आग लगाने से क्या होगा आज? बताओ !

छोड़ो गाना शब्द प्रलापी, व्यर्थ न ऐसे शीश नवाओ।
हिम्मत बाँधो, वीर प्रतापी, पत्थर काटो, राह बनाओ।
फुलझड़ियों  को आग लगाने से क्या होगा आज? बताओ !
साहस हो तो बम सुलगाओ, बहरों के पर्दे फाड़ गिराओ।
– प्रकाश ‘पंकज’


* संगर्भ: शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव


सोमवार, 18 जुलाई 2011

भारत बनाम भ्रष्टाचार: छोड़ो गाना शब्द प्रलापी

छोड़ो गाना शब्द प्रलापी,
व्यर्थ न ऐसे शीश नवाओ।
हिम्मत बाँधो, वीर प्रतापी,
पत्थर काटो, राह बनाओ।  

– प्रकाश ‘पंकज’

बुधवार, 29 जून 2011

भारत बनाम भ्रष्टाचार: 'Thug' की जननी भारतभूमि

क्या आप जानते हैं?
अंग्रेजी में 'Thug' या 'Thuggery' शब्द भारत से हीं गया है।
क्यों? 
इतना भ्रष्टाचार देखकर आपको नहीं लगता 
कि भारत सबसे अच्छी जगह है ऐसे शब्दों के जनने के लिए? 
हमें तो गर्व होना चाहिए न?


– प्रकाश ‘पंकज’

शनिवार, 25 जून 2011

भारत बनाम भ्रष्टाचार: जनता भींगेगी या बरसेगी?


बारिश हो रही है, भींगो न भींगो तुमपर है;
छत्र जो है तुम्हारे पास।

देश के मौसम भी कुछ ऐसे हैं 
कि खून बरसेगा हीं बरसेगा;
तब कोई छत्र न होगा, भींगना ही होगा
– प्रकाश ‘पंकज’


* छत्र ~ Savior

गुरुवार, 23 जून 2011

कभी न पूरी हो सकने वाली जिद्द

तारीखें याद नहीं रहती,
घड़ियों को देखना छोड़ दिया..
मैंने हर उसके लिए रुकना छोड़ना सोंचा था जो मेरे लिए न रुका ...
..
(कभी न पूरी हो सकने वाली जिद्द?)

- प्रकाश 'पंकज'

बुधवार, 22 जून 2011

कैसी है रे होड़ सजन सब पाक चरित सुलगावै?

कैसी है रे होड़ सजन सब पाक चरित सुलगावै?
का करी घर मा बैठ कहो निज धरती आग लगावै? – प्रकाश 'पंकज' 

ऐ खाकनशीनों उठ बैठो, वह वक्त करीब आ पहुंचा है,
जब तख्त गिराए जाएंगे, जब ताज उछाले जाएंगे।
अब टूट गिरेंगी जंजीरें, अब जिंदानों की खैर नहीं,
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं, तिनकों से न टाले जाएंगे।
दरबार-ए-वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएंगे,
कुछ अपनी सजा को पहुंचेंगे, कुछ अपनी सजा ले जाएंगे।
कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाजू भी बहुत हैं,सर भी बहुत,
चलते भी चलो कि अब डेरे, मंजिल पे ही डाले जाएंगे।  - फैज अहमद फैज 

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

वाह रे ग्लोबलाईजेशन ! तूने घरवालों को भी बेघर कर दिया

वाह रे ग्लोबलाईजेशन !
तूने घरवालों को भी बेघर कर दिया।
सभी खानाबदोश जैसे इधर-उधर भाग रहे हैं;
शायद उन्हें भी पता नहीं, क्यों?

– प्रकाश ‘पंकज’



 * चित्र: गूगल साभार 

मंगलवार, 25 जनवरी 2011

हनुमान तो सबके भीतर है, जगाने वाले जामवंत की आवश्यकता है।

"उस युग के जामवंत"
"इस युग के जामवंत"
हनुमान तो सबके भीतर है,
जगाने वाले जामवंत की आवश्यकता है।