छोड़ो गाना शब्द प्रलापी,
व्यर्थ न ऐसे शीश नवाओ।
हिम्मत बाँधो, वीर प्रतापी,
पत्थर काटो, राह बनाओ।
– प्रकाश ‘पंकज’
सोमवार, 18 जुलाई 2011
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पता नहीं अकस्मात् ये भावनाएँ क्यों झिंझोड़ जाती हैं । निमंत्रण बिना आती हैं और उद्वेलित कर चली जाती हैं ।
वाह!
जवाब देंहटाएंI am extremely impressed along with your writing abilities, Thanks for this great share.
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