छोड़ो गाना शब्द प्रलापी, व्यर्थ न ऐसे शीश नवाओ।
हिम्मत बाँधो, वीर प्रतापी, पत्थर काटो, राह बनाओ।
फुलझड़ियों को आग लगाने से क्या होगा आज? बताओ !
साहस हो तो बम सुलगाओ, बहरों के पर्दे फाड़ गिराओ। – प्रकाश ‘पंकज’
* संगर्भ: शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव
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आपके अवलोकन के लिए धन्यवाद करते हुए आपसे यह आग्रह करूँगा कि इसे पढ़ने के बाद आपके मन में जो भी विचार आये हों कृपया हमसे जरूर बाँटें ...
एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी का नौकर पर अपना मालिक.
वर्त्तमान में सॉफ्टवेर इंजिनियर के रूप में कार्यरत ।
२००८ के जनवरी से मैंने कविता लिखनी शुरू की। "इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर कि धरती पराई लगने लगे" मेरी पहली कविता है । मैं अपनी भावनाओं और विचारों को अक्सर कविता में ढालने की कोशिश करता हूँ पर बहुत कम बार ही सफल हो पता हूँ। मोतियाँ बहुत हैं पर मालाओं में पिरोना सीख रहा हूँ। कृपया आशीर्वाद दें !
शस्त्र भारी थे , उठता न था , लेखनी को ही अब शस्त्र बना लिया ।
शब्द धीमे थे , कोई सुनता न था , लेखन को ही अब स्वर बना लिया । - प्रकाश 'पंकज'
http://prakashpankaj.wordpress.com
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