हमारे हिन्दुस्तान में
हिन्दी कम जानना या नहीं जानना बड़े गर्व की बात है,
पर अंग्रेजी कम जानना एक शर्म की बात है
और अंग्रेजी नहीं जानना डूब मरने की बात है।
... फिर भी न जाने कैसे हम निर्लज्जों को राष्ट्र पर गर्व है
– प्रकाश 'पंकज'
गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010
मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010
पूजा के पंडाल या पंडालों की पूजा?
पूजा के पंडाल या पंडालों की पूजा?
सोंच कर जबाब दें, हड़बड़ी नहीं है, दोबारा सोंचें फिर जबाब दें :
१) क्या हम माँ दुर्गा की पूजा करते हैं या पंडालों की, मूर्तियों की, मूर्तियों के सजावट की?
२) क्या आज के युवक युवतियाँ माँ दुर्गा के दर्शन को पंडालों में जाते हैं या वहाँ उमड़ती भीड़ को देखने जाते हैं, अपनी आँखों को सेंकने जाते हैं?
३) हम माँ दुर्गा को नमन करते हैं या वाहवाही करते हैं पंडाल निर्माण समितियों की?
४) एक तरह हम एक भूखे को खिलने की औकाद नहीं रखते और इस तरफ करोड़ों खर्च कर देते हैं। क्या हम सही में माता की भक्ति करते हैं?
५) पूजा आयोजक समीतियाँ क्या सचमुच समर्पित भाव से माँ दुर्गा का भव्य पूजन करती हैं या उन पैसों से अपना धनोपार्जन करती हैं?
हम मूर्खों को यह विचार तक नहीं आता कि माँ दुर्गा के भव्य दर्शन तो मन से ही हो सकते हैं इन पंडालों में क्या रखा है। बस बैठ जाओ एकाग्रचित्त होकर पढ़ जाओ और समझने की कोशिश करो जो लिखा गया है दुर्गा सप्तशती में, दुर्गा सप्तशती जो कि मार्कंडेय पुराण से लिया गया है। यही माँ दुर्गा का सर्वश्रेष्ठ चिंतन और सर्वश्रेष्ठ दर्शन होगा नवरात्र के दिनों में। इन ७०० श्लोकों से कुछ जानने की कोशिश करो कुछ ग्रहण करने की कोशिश करो।
खेलगांव ने तो सिर्फ एक कलमाड़ी को जना है यहाँ पंडालों के पीछे न जाने कितने छोटे-बड़े कलमाड़ी पैदा हो जाते हैं इन १० दिनों में। उन पैसों को समाज कल्याण में लगाया जाता तो और भी बेहतर होता। पर यही नियति है भारत की कि संसाधन पूरे भरे हैं पर लोग जागृत कम हैं, भ्रमित ज्यादा हैं, सुप्त ज्यादा हैं |
मैं खुद को यहाँ जागृत होने का दावा नहीं कर रहा, पर हाँ आप पर सुप्त या भ्रमित होने का संदेह जरूर कर रहा हूँ।
जय माँ दुर्गे, जय माँ भारती। आप सभी लोगों को नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ। माँ दुर्गा भारत की सुप्त चेतना को जागृत करें। – प्रकाश ‘पंकज’
श्री श्री दुर्गा सप्तशती यहाँ से डाउनलोड करें :
Sri-Sri-Durga-Sapt... |
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मंगलवार, 5 अक्टूबर 2010
भरत-पुत्रों की चेतावनी
दुनिया वाले सुन लें ...
भरत-पुत्रों की सहनशीलता का तटबंध जब टूटता है,
वे भीम समान मानवता भूल रक्तपिपासु हो जाते है,
शत्रु-वक्ष की रुधिर-चासनी पी कर ही अघाते हैं ।
... कोशिश हो ऐसा रक्तिम इतिहास दोहराया न जाये ।
– प्रकाश ‘पंकज’
– प्रकाश ‘पंकज’
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