दो लिंगों के आलिंगन को प्यार नहीं मैं कह सकता ,
सुवसनों से लाख सजा दो श्रंगार उसे नहीं कह सकता। - पंकज
सुवसनों से लाख सजा दो श्रंगार उसे नहीं कह सकता। - पंकज
पता नहीं अकस्मात् ये भावनाएँ क्यों झिंझोड़ जाती हैं । निमंत्रण बिना आती हैं और उद्वेलित कर चली जाती हैं ।