मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

भरत-पुत्रों की चेतावनी

दुनिया वाले सुन लें ...
भरत-पुत्रों की सहनशीलता का तटबंध जब टूटता है,
वे भीम समान मानवता भूल रक्तपिपासु हो जाते है,
शत्रु-वक्ष की रुधिर-चासनी पी कर ही अघाते हैं ।
 ... कोशिश हो ऐसा रक्तिम इतिहास दोहराया न जाये ।   
– प्रकाश ‘पंकज’

6 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया प्रस्तुति..चिट्ठाजगत की बत्ती जली मिली ... चिट्ठाजगत टीम को बधाई.

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  2. अच्छा हो कि दुनिया क़े लोग भारत क़े धैर्य की परीक्षा न ले.

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  3. रस चूसता हो जो मही का भीमकाय वृक्ष, उसकी शिराएँ तोड़ डालो डालियाँ क़तर दो. बस यही अब शेष है.

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