शशिधर नृत्य करो ऐसा कि, नवयुग का फिर नव-सृजन हो !
भष्म कर दो अब यह धरती, पुनः धरा निर्माण हो, फिर से जन-एकांत हो !
शशिधर नृत्य करो ऐसा कि, नवयुग का फिर नव-सृजन हो !
पता नहीं अकस्मात् ये भावनाएँ क्यों झिंझोड़ जाती हैं । निमंत्रण बिना आती हैं और उद्वेलित कर चली जाती हैं ।
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