न जीत ही अपनी रही, न हार ही अपनी रही,
संग्राम बस अपना रहा, कर्मभूमि बस अपनी रही ।
- प्रकाश 'पंकज'
- प्रकाश 'पंकज'
पता नहीं अकस्मात् ये भावनाएँ क्यों झिंझोड़ जाती हैं । निमंत्रण बिना आती हैं और उद्वेलित कर चली जाती हैं ।
ये दुनिया बड़ी ढकोसले वाली है ।