"बाल-मजदूरी कानून".. किसका अभिशाप? किसका वरदान?
गजब के घटिया कानून है देश के:
एक समृद्ध परिवार का बच्चा जिसकी परवरिश बड़े अच्छे ढंग से हो रही है, अपने स्कूल और पढाई छोड़ कर टी.वी. सीरियल या फिल्म में काम करता है सिर्फ और सिर्फ अपनी और अपने परिवार की तथाकथित ख्याति के लिए तो यह "बाल-मजदूरी" नहीं होती। वेश्यावृति करने वाली मीडिया भी इसे प्रोत्साहित करती है।
वहीँ अगर कोई बच्चा अपने और अपने परिवार वालों का पेट पालने के लिए प्लेट धो लेता है तो यह "बाल-मजदूरी" हो जाती है और वहीँ यह दोगली मीडिया उस बात को उछाल-उछाल कर कान पका देती है।
.. हमारे यहाँ ऐसे लोगों की भी कमी बिल्कुल नहीं है जो कहेंगे कि वे टी.वी. शो वाले प्रतिभा को प्रोत्साहित कर रहे हैं। ऐसे लोगों को मेरा एक ही जबाब है अगर आपके बच्चों का टी.वी. शो में नाचना गाना प्रतिभा हो सकती है तो हरेक शाम अपनी और अपने घरवालों की रोटी जुगारने की कोशिश में उन बच्चों की प्रतिभा कहीं से भी कम नहीं है, बल्कि ज्यादा ही है। और, अगर आप उनके सामाजिक विकास और शैक्षणिक विकास की बात करें तो दोनों जगहों पर एक हीं बात सामने आती है कि वे सभी अनिवार्य शिक्षा से दूर हो रहे हैं। जुलाहे का बच्चा तो सुविधा नहीं मिलने के कारण शिक्षा में पिछड़ रहा है पर आपका बच्चा तो सुविधाओं के बावजूद उस धारा में बह रहा है जो शैक्षणिक विकास से बिलकुल अलग है। अगर ऐसा ही रहा तो आने वाली पीढ़ी एक "कबाड़ पीढ़ी" पैदा होगी।
यहाँ मै कानून को लाचार ही नहीं उन लोगों का नौकर भी समझूंगा जिनके पास पैसा है, शक्ति है, वर्चस्व है। यही लोग कानून को कुछ इस तरह से बनाते है कि जिनके पास ऐसी समृद्धि है वो इससे निकल सकते हैं और जिनके पास नहीं है वो पिसे जाते हैं इन कानूनी दैत्य-दन्तों द्वारा।
अगर कोई होटल-ढाबे वाला किसी को जीविका देने के लिए "बाल-मजदूरी" करवाने का दोषी हो सकता है तो आज हम सारे लोग जो बड़े मजे से टी.वी. के सामने ठहाके मारते हैं, वाह-वाह करते है, मेरी नज़र में वो सब दोषी हैं "बाल-मजदूरी" करवाने के।
अगर कोई होटल-ढाबे वाला किसी को जीविका देने के लिए "बाल-मजदूरी" करवाने का दोषी हो सकता है तो आज हम सारे लोग जो बड़े मजे से टी.वी. के सामने ठहाके मारते हैं, वाह-वाह करते है, मेरी नज़र में वो सब दोषी हैं "बाल-मजदूरी" करवाने के।
... कानून माने या न माने।
... आप माने या न मानें।
... और मुझे यह भी मालूम है कि अकेले सिर्फ मेरे मानने से भी कुछ नहीं होने को है।
... और मुझे यह भी मालूम है कि अकेले सिर्फ मेरे मानने से भी कुछ नहीं होने को है।
और अंत में इतना हीं कहूँगा कि यदि आपमें अब भी समाज के प्रति थोड़ी नैतिक जिम्मेदारी बची हो तो इसपर विचारें और ऐसे टी.वी. सीरियलों, फिल्मों का "प्रतिकार" करें, सामाजिक बहिष्कार करें, उनका सहभागी न बनें, किन्नरों जैसे तालियाँ न पीटें।
चलता हूँ और आपके लिए कुछ लिंक छोड़ जाता हूँ। धन्यवाद!
चलता हूँ और आपके लिए कुछ लिंक छोड़ जाता हूँ। धन्यवाद!
आपके लेख ने सोचने कि नयी दिशा दी है ... ऐसा क्यों होता है और ये इस बाल मजदूरी कानून एं क्यों नहीं आते .... इसका सच जान्ने कि कोशिश करूंगा ..
जवाब देंहटाएंChild Labour has different perspective. It should not be banned but it should be such position that clildren can live without working. And we should not increase children's problems by banning their work. No child works by his will he works due to some problem. We should try to solve these problesm.
जवाब देंहटाएंसही कहा, मेरा भी मानना है कि छोटे उस्ताद और बच्चों के सारे रियलिटी शो बाल मज़दूरी के ही मामले हैं. ऊपर से सारे हिंदुस्तान के सामने हारने की पीड़ा और ग्लानि उन पर क्या ज़ुल्म ढाती होगी उसे तो वे ही जानते होंगे.
जवाब देंहटाएंNever thought abt it this way.. :)... nice point of view...
जवाब देंहटाएंwaise kanoon kya hai? Is it punishable under law? why is it not taken care of?
I mean, the shows where kids do acting aur comedy infact......one of them i recall is Comedy Circus..
hanji acha hai magar afsos hota hai ki aaj b ham wahi questions k sath khade hai akhir esa kyun samjh nahi aata
जवाब देंहटाएंbhai ham insab chijo pe lachar hi rahenge jab tak ki hitler jaisi nitiyan nahi laghu hoti
bhai mai aur mere pitaji hum dono isi bat par kai logon se charcha kar chuke hain lekin hum sab jante hain ki in baton ko log kuch der tak dhyan dete hain fir ye sochte hain ki ye hamara kam thore hi hai ye sarkar ka kam hai. aaj is balmajduri ka mar is kadar badh gaya hai ki ab mandiro ke bahar bado se jyada bache bhikhari dikhne lage hain ise to acha tha ki kuch mehnat karne ki aadat bachpan se hi hoti unhe warna ek umra ke bad unhe hum mehanat karne ki jagah sortcut tarike se paisa kamane aadat lag jati hai jo sabhi ke liye paresani ban jati hai. aapka kahna bilkul sahi hai ki ye bacho ke reality show galat hai magar mai kahunga ki sarkar ko dono pahaluon pe sochna chahiye.
जवाब देंहटाएंChild Labour is punishable act under Indian Laws... But the catch is in definition of the crime itself... Media channels are able to buy-out the lawyers as well as the lawmakers. The Loopholes of the law are taken care of... Hence giving birth to nonpunishable crime/offense...
जवाब देंहटाएंRemember we live in an age that has it's heart sleeping in the coterie of unknown practicality... illogical logic... and darkened wisdom...
There were times when law of the land was equal for all... and these are the times when law peeps through it's blindfold to see the person and changes according to that...
It's not that these are bad times since many bad people are doing many bad things... But these are the bad times because good people are not doing any good things...
Talking wont do any good... Discussions are being done since ages... this is the tyme to hit hard...
Someone once said 'World has become a jungle...' Now in jungle you either kill or get killed... Choice is yours.. thinking, talking, and discussions, should be, would be, will... these are the things of passe... It's now or never....
sigh...
aap ne likha hai woh theek hai
जवाब देंहटाएंis baare mein maine kabhi socha nahi tha
kyon ki main TV bahut kam dekhta hoon
khas kar k aise shows
sirf news ya kabhi kabhi discovery
so 100 % sehmat hoon
aap se
सही कहा, मेरा भी मानना है
जवाब देंहटाएंआपके लेख ने सोचने कि नयी दिशा दी है
विचारणीय लेख के लिए.................बधाई
Sir,
जवाब देंहटाएंये वही बात है की समाज में " ऊँचे परिवार के लोग अगर कम कपरे या फटे कपरे पहने तो ये फैशन है" और " हम पहने तो बेढंग है "
bilkul sahi kaha bhai..but kahte hai na ki..
जवाब देंहटाएंJO DIKHTA HAI..WOH BIKTA HAI..
@abhishek: वो तो समाज की विकृति है , लोगों के सोंच की विकृति है...इसको भी सुधारना होगा...
जवाब देंहटाएंपर मैन जिसकी बात कर रहा हूँ वो तो कानून की विकृति है
"क्योकि बहुत सारे कानून समाज के दबाव और बदलाव के कारण बदले है | ईसलिए अगर समाज की विकृति और इसके विचारो को बदला जाये तो यह समाज कानून को समझेगा और कानून में बदलाव लाया जा सकेगा " ऐसा मेरा मानना है|
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है पकंज जी...बाल मज़दूरी से जुड़ा एक पक्ष ये भी है।
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